श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 810

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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उपसंहार- संन्यास की सिद्धि
अध्याय 18 : श्लोक-70


अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयो: ।
ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्ट: स्यामिति मे मति: ॥70॥[1]

भावार्थ

और मैं घोषित करता हॅं कि जो हमारे इस पवित्र संवाद का अध्ययन करता है, वह अपनी बुद्धि से मेरी पूजा करता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अध्येष्यते=अध्ययन या पाठ करेगा; च=भी; यः=जो; इमम्=इस; धर्म्‍यम=पवित्र; संवादम्=वार्तालाप या संवाद को; आवयोः=हम दोनों के; ज्ञान=ज्ञान रूपी; यज्ञेन=यज्ञ से; तेन=उसके द्वारा; अहम्=में; इष्टः=पूजित; स्याम्=होऊँगा; इति=इस प्रकार; मे=मेरा; मतिः=मत।

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