श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
उपसंहार- संन्यास की सिद्धि
अध्याय 18 : श्लोक-70
अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयो: ।
और मैं घोषित करता हॅं कि जो हमारे इस पवित्र संवाद का अध्ययन करता है, वह अपनी बुद्धि से मेरी पूजा करता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अध्येष्यते=अध्ययन या पाठ करेगा; च=भी; यः=जो; इमम्=इस; धर्म्यम=पवित्र; संवादम्=वार्तालाप या संवाद को; आवयोः=हम दोनों के; ज्ञान=ज्ञान रूपी; यज्ञेन=यज्ञ से; तेन=उसके द्वारा; अहम्=में; इष्टः=पूजित; स्याम्=होऊँगा; इति=इस प्रकार; मे=मेरा; मतिः=मत।
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