श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 430

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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श्री भगवान का ऐश्वर्य
अध्याय-10 : श्लोक-4-5


बुद्धिर्ज्ञानसम्मोहः क्षमा सत्यं दमः शमः।
सुखं दु:खं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च।।

अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः।
भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः।।[1]

भावार्थ

बुद्धि, ज्ञान, संशय तथा मोह से मुक्ति, क्षमाभाव, सत्यता, इन्द्रियनिग्रह, मननिग्रह, सुख तथा दुख, जन्म, मृत्यु, भय, अभय, अहिंसा, समता, तुष्टि, तप, दान, यश तथा अपयश– जीवों के ये विविध गुण मेरे ही द्वारा उत्पन्न हैं।

तात्पर्य

जीवों के अच्छे या बुरे गुण कृष्ण द्वारा उत्पन्न हैं और यहाँ पर उनका वर्णन किया गया है।

बुद्धि का अर्थ है नीर-क्षीर विवेक करने वाली शक्ति, और ज्ञान का अर्थ है, आत्मा तथा पदार्थ को जान लेना। विश्वविद्यालय की शिक्षा से प्राप्त सामान्य ज्ञान पदार्थ से सम्बन्धित होता है, यहाँ इसे ज्ञान नहीं स्वीकार किया गया है। ज्ञान का अर्थ है आत्मा तथा भौतिक पदार्थ के अन्तर को जानना। आधुनिक शिक्षा में आत्मा के विषय में कोई ज्ञान नहीं दिया जाता, केवल भौतिक तत्त्वों तथा शारीरिक आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जाता है। फलस्वरूप शैक्षिक ज्ञान पूर्ण नहीं है।

असम्मोह अर्थात संशय तथा मोह से मुक्ति तभी प्राप्त हो सकती है, जब मनुष्य झिझकता नहीं और दिव्य दर्शन को समझता है। वह धीरे-धीरे निश्चित रूप से मोह से मुक्त हो जाता है। हर बात को सतर्कतापूर्वक ग्रहण करना चाहिए, आँख मूँदकर कुछ भी स्वीकार नहीं करना चाहिए। क्षमा का अभ्यास करना चाहिए। मनुष्य को सहिष्णु होना चाहिए और दूसरों के छोटे-छोटे अपराध क्षमा कर देना चाहिए। सत्यम् का अर्थ है कि तथ्यों को सही रूप से अन्यों के लाभ के लिए प्रस्तुत किया जाए। तथ्यों को तोड़ना मरोड़ना नहीं चाहिए। सामाजिक प्रथा के अनुसार कहा जाता है कि वही सत्य बोलना चाहिए जो अन्यों को प्रिय लगे। किन्तु यह सत्य नहीं है। सत्य को सही-सही रूप में बोलना चाहिए, जिससे दूसरे लोग समझ सकें कि सच्चाई क्या है। यदि कोई मनुष्य चोर है और यदि लोगों को सावधान कर दिया जाय कि अमुक व्यक्ति चोर है, तो यह सत्य है। यद्यपि सत्य कभी-कभी अप्रिय होता है, किन्तु सत्य कहने में संकोच नहीं करना चाहिए। सत्य की माँग है कि तथ्यों को यथारूप में लोकहित के प्रस्तुत किया जाय। यही सत्य की परिभाषा है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बुद्धिः–बुद्धि; ज्ञानम्–ज्ञान; असम्मोहः–संशय से रहित; क्षमा–क्षमा; सत्यम्–सत्यता; दमः–इन्द्रियनिग्रह; शमः–मन का निग्रह; सुखम्–सुख; दुःखम्–दुख; भवः–जन्म; अभवः–मृत्यु; भयम्–डर; च–भी; अभयम्–निर्भीकता; एव–भी; च–तथा; अहिंसा–अहिंसा; समता–समभाव; तुष्टिः–संतोष; तपः–तपस्या; दानम्–दान; यशः–यश; अयशः–अपयश, अपकीर्ति; भवन्ति–होते हैं; भावाः–प्रकृतियाँ; भूतानाम्–जीवों की; मत्तः–मुझसे; एव–निश्चय ही; पृथक्-विधाः–भिन्न-भिन्न प्रकार से व्यवस्थित।

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