श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 453

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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श्री भगवान का ऐश्वर्य
अध्याय-10 : श्लोक-22


वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः।
इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना।।[1]
भावार्थ

मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवों में स्वर्ग का राजा इन्द्र हूँ, इन्द्रियों में मन हूँ, तथा समस्त जीवों में जीवनशक्ति (चेतना) हूँ।

तात्पर्य

पदार्थ तथा जीव में यह अन्तर है कि पदार्थ में जीवों के समान चेतना नहीं होती, अतः यह चेतना परम तथा शाश्वत है। पदार्थों के संयोग से चेतना उत्पन्न नहीं की जा सकती।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वेदानाम्-वेदों में; साम-वेदः-सामवेद; अस्मि-हूँ; देवानाम्-देवताओं में; अस्मि-हूँ; वासवः-स्वर्ग का राजा; इन्द्रियाणाम्-इन्द्रियों में; मनः-मन; च-भी; अस्मि-हूँ; भूतानाम्-जीवों में; अस्मि-हूँ; चेतना-प्राण, जीवन शक्ति।

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