श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
उपसंहार- संन्यास की सिद्धि
अध्याय 18 : श्लोक-69
न च तस्मान्नुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तम: ।
इस संसार में उसकी अपेक्षा कोई अन्य सेवक न तो मुझे अधिक प्रिय है और न कभी होगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ न=कभी नहीं; च=तथा; तस्मात्=उसकी अपेक्षा; मनुष्येषु=मनुष्यों में; कश्चित्=कोई; मे=मुझको; प्रिय-कृत-तमः=अत्यन्त प्रिय; भविता=होगा; न=न तो; च=तथा; मे=मुझको; तस्मात्=उसकी अपेक्षा, उससे; अन्यः=कोई दूसरा; प्रिय-तरः=अधिक प्रिय; भुवि=इस संसार में।
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