श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
अध्याय-1 : श्लोक-4
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि ।
यद्यपि युद्धकला में द्रोणाचार्य की महान शक्ति के समक्ष धृष्टदयुम्न महत्त्वपूर्ण बाधक नहीं था किन्तु ऐसे अनेक योद्धा थे जिनसे भय था। दुर्योधन इन्हें विजय-पथ में अत्यन्त बाधक बताता है क्योंकि इनमें से प्रत्येक योद्धा भीम तथा अर्जुन के समान दुर्जेय था। उसे भीम तथा अर्जुन के बल का ज्ञान था, इसीलिए वह अन्यों की तुलना इन दोनों से करता है। अध्याय-1 : श्लोक-5
धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान् ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अत्र - यहाँ; शूराः - वीर; महा-इषु -आसा - महान धनुर्धर; भीम-अर्जुन - भीम तथा अर्जुन; समाः - के समान; युधि - युद्ध में; युयुधानः - युयुधान; विराटः - विराट; च - भी; द्रुपदः - द्रुपद; च - भी; महारथः - महान योद्धा ।
- ↑ धृष्टकेतु: - धृष्टकेतु; चेकितानः - चेकितान; काशिराजः - काशिराज; च - भी; वीर्यवान् - अत्यन्त शक्तिशाली; पुरुजित् - पुरुजित्; कुन्तिभोजः - कुन्तिभोज; च - तथा; शैब्यः - शैब्य; च - तथा; नरपुङ्गवः - मानव समाज के वीर ।
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