श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 373

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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भगवत्प्राप्ति
अध्याय 8 : श्लोक-22

कृष्ण के परमधाम में या असंख्य वैकुण्ठ लोकों में भक्ति के द्वारा ही प्रवेश सम्भव है, जैसा कि भक्त्या शब्द द्वारा सूचित होता है। किसी अन्य विधि से परमधाम की प्राप्ति सम्भव नहीं है। वेदों में[1] भी परमधाम तथा भगवान का वर्णन मिलता है। एको वशी सर्वगः कृष्णः। उस धाम में केवल एक भगवान रहता है, जिसका नाम कृष्ण है। वह अत्यन्त दयालु विग्रह है और एक रूप में स्थित होकर भी वह अपने को लाखों स्वांशों में विस्तृत करता रहता है। वेदों में भगवान की उपमा उस शान्त वृक्ष से दी गई है, जिसमें नाना प्रकार के फूल तथा फल लगे हैं और जिसकी पत्तियाँ निरन्तर बदलती रहती हैं। वैकुण्ठ लोक की अध्यक्षता करने वाले भगवान के स्वांश चतुर्भुजी हैं और विभिन्न नामों से विख्यात है– पुरुषोत्तम, त्रिविक्रम, केशव, माधव, अनिरुद्ध, हृषीकेश, संकर्षण, प्रद्युम्न, श्रीधर, दामोदर, जनार्दन, नारायण, वामन, पद्मनाभ आदि।

ब्रह्मसंहिता में[2] भी पुष्टि हुई है कि यद्यपि भगवान निरन्तर परमधाम गोलोक वृन्दावन में रहते हैं, किन्तु वे सर्वव्यापी हैं ताकि सब कुछ सुचारु रूप से चलता रहे।[3] वेदों में[4] कहा गया है– परास्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते। स्वाभाविकी ज्ञानबलक्रिया च– उनकी शक्तियाँ इतनी व्यापक हैं कि परमेश्वर के दूरस्थ होते हुए भी दृश्यजगत में बिना किसी त्रुटि के सब कुछ सुचारु रूप से संचालित करती रहती हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गोपाल-तापनी उपनिषद 3.2
  2. 5.37
  3. गोलोक एव निवसत्यखिलात्मभूतः
  4. श्वेताश्वतर उपनिषद 6.8

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