श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-54
भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन। भावार्थ तात्पर्य |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भक्त्या - भक्ति से; तु - लेकिन; अनन्यया - सकामकर्म तथा ज्ञान के रहित; शक्यः - सम्भव; अहम् - मैं; एवम्-विधः - इस प्रकार; अर्जुन - हे अर्जुन; ज्ञातुम् - जानने; द्रष्टुम् - देखने; च - तथा; तत्त्वेन - वास्तव में; प्रवेष्टुम् - प्रवेश करने; च - भी; परन्तप - हे बलिष्ठ भुजाओं वाले।
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