श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 608

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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प्रकृति के तीन गुण
अध्याय 14 : श्लोक-4


सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तय: सम्भवन्ति या: ।
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रद: पिता ॥4॥[1]

भावार्थ

हे कुन्तीपुत्र! तुम यह समझ लो कि समस्त प्रकार की जीव-योनियाँ इस भौतिक प्रकृति में जन्म द्वारा सम्भव हैं और मैं उनका बीज-प्रदाता पिता हूँ।

तात्पर्य

इस श्लोक में स्पष्ट बताया गया है कि भगवान श्रीकृष्ण समस्त जीवों के आदि पिता हैं। सारे जीव भौतिक प्रकृति तथा अध्यात्मिक प्रकृति के संयोग हैं। ऐसे जीव केवल इस लोक में ही नहीं, अपितु प्रत्येक लोक में, यहाँ तक कि सर्वोच्च लोक में भी, जहाँ ब्रह्मा आसीन हैं, पाये जाते हैं। जीव सर्वत्र हैं- पृथ्वी, जल तथा अग्नि के भीतर भी जीव हैं। ये सारे जीव माता भौतिक प्रकृति तथा बीजप्रदाता कृष्ण के द्वारा प्रकट होते हैं। तात्पर्य यह है कि भौतिक जगत जीवों को गर्भ में धारण किये हैं, जो सृष्टिकाल में अपने पूर्वकर्मों के अनुसार विविध रूपों में प्रकट होते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सर्व-योनिषु= समस्त योनियों में; कौन्तेय= हे कुन्तीपुत्र; मूर्तयः= स्वरूप; सम्भवन्ति= प्रकट होते हैं; याः= जो; तासाम्= उन सबों का; ब्रह्म= परम; महत् योनिः= जन्म स्त्रोत; अहम्= मैं; बीजप्रदः= बीजप्रदाता; पिता= पिता।

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