श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 613

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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प्रकृति के तीन गुण
अध्याय 14 : श्लोक-8


तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम् ।
प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत ॥8॥[1]

भावार्थ

हे भरतपुत्र! तुम जाने लो कि अज्ञान से उत्पन्न तमोगुण समस्त देहधारी जीवों का मोह है। इस गुण के प्रतिफल पागलपन (प्रमाद), आलस तथा नींद हैं, जो बद्धजीव को बाँधते हैं।

तात्पर्य

इस श्लोक में तु शब्द का प्रयोग उल्लेखनीय है। इसका अर्थ है कि तमोगुण देहधारी जीव का अत्यन्त विचित्र गुण है। यह सतोगुण के सर्वथा विपरीत है। सतोगुण में ज्ञान के विकास से मनुष्य यह जान सकता है कि कौन क्या है, लेकिन तमोगुण तो इसके सर्वथा विपरीत होता है। जो भी तमोगुण के फेर में पड़ता है, वह पागल हो जाता है और पागल पुरुष यह नहीं समझ पाता कि कौन क्या है। वह प्रगति करने के बजाय अधोगति को प्राप्त होता है।

वैदिक साहित्य में तमोगुण की परिभाषा इस प्रकार दी गई है- वस्तुयाथात्म्यज्ञानावरकं विषर्ययज्ञानजनकं तमः- अज्ञान के वशीभूत होने पर कोई मनुष्य किसी वस्तु को यथारूप में नहीं समझ पाता। उदाहरणार्थ, प्रत्येक व्यक्ति देखता है कि उसका बाबा मरा है, अतएव वह भी मरेगा, मनुष्य मर्त्य है। उसकी सन्तानें भी मरेंगी। अतएव मृत्यु ध्रुव है। फिर भी लोग पागल होकर धन संग्रह करते हैं और नित्य आत्मा की चिन्ता किये बिना अहर्निश कठोर श्रम करते रहते हैं। यह पागलपन ही तो है। अपने पागलपन में वे आध्यात्मिक ज्ञान में कोई उन्नति नहीं कर पाते। ऐसे लोग अत्यन्त आलसी होते हैं। जब उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान में सम्मिलित होने के लिए आमन्त्रित किया जाता है, तो वे अधिक रुचि नहीं दिखाते। वे रजोगुणी व्यक्ति की तरह भी सक्रिय नहीं रहते। अतएव तमोगुण में लिप्त व्यक्ति का एक अन्य गुण यह भी है कि वह आवश्यकता से अधिक सोता हैं छह घंटे की नींद पर्याप्त है, लेकिन ऐसा व्यक्ति दिन भर में दस-बारह घंटे तक सोता है। ऐसा व्यक्ति सदैव निराश प्रतीत होता है और भौतिक द्रव्यों तथा निद्रा के प्रति व्यसनी बन जाता है। ये हैं तमोगुणी व्यक्ति के लक्षण।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. तमः= तमोगुण; तु= लेकिन; अज्ञान-जम्= अज्ञान से उत्पन्न; विद्धि= जानो; मोहनम्= मोह; सर्वदेहिनाम्= समस्त देहधारी जीवों का; प्रमाद= पागलपन; आलस्य= आलस; निद्राभिः= तथा नींद द्वारा; सत्= वह; निबध्नाति= बाँधता है; भारत= हे भरतपुत्र।

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