श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 593

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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प्रकृति, पुरुष तथा चेतना
अध्याय 13 : श्लोक-26


अन्ये त्वेमवजानन्त: श्रुत्वान्येभ्य उपासते ।
तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणा: ॥26॥[1]

भावार्थ

ऐसे भी लोग हैं जो यद्यपि आध्यात्मिक ज्ञान से अवगत नहीं होते पर अन्यों से परम पुरुष के विषय में सुनकर उनकी पूजा करने लगते हैं। ये लोग भी प्रामाणिक पुरुषों से श्रवण करने की मनोवृत्ति होने के कारण जन्म तथा मृत्यु के पथ को पार कर जाते हैं।

तात्पर्य

यह श्लोक आधुनिक समाज पर विशेष रूप से लागू होता है, क्योंकि आधुनिक समाज में आध्यात्मिक विषयों की शिक्षा नहीं दी जाती। कुछ लोग नास्तिक प्रतीत होते हैं, तो कुछ अजेयवादी तथा दार्शनिक, लेकिन वास्तव में इन्हें दर्शन का कोई ज्ञान नहीं होता। जहाँ तक सामान्य व्यक्ति की बात है, यदि वह पुण्यात्मा है, तो श्रवण द्वारा प्रगति कर सकता है। यह श्रवण विधि अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अन्ये= अन्य लोग; तु= लेकिन; एवम्= इस प्रकार; अजानन्तः= आध्यात्मिक ज्ञान से रहित; श्रुत्वा= सुनकर; अन्येभ्यः= अन्यों से; उपासते= पूजा करना प्रारम्भ कर देते हैं; ते= वे; अपि= भी; च= तथा; अतितरन्ति= पार कर जाते हैं; एव= निश्चय ही; मृत्युम्= मृत्यु का मार्ग; श्रुति परायणाः= श्रवण विधि के प्रति रुचि रखने वाले।

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