श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
दैवी तथा आसुरी स्वभाव
अध्याय 16 : श्लोक-8
जिस प्रकार अनेक जीवित प्राणी अकारण पसीने ही से (स्वेदज) तथा मृत शरीर से उत्पन्न हो जाते हैं, उसी प्रकार यह सारा जीवित संसार दृश्य जगत् के भौतिक संयोगों से प्रकट हुआ है। अतएव प्रकृति ही इस संसार की कारणस्वरूपा है, इसका कोई अन्य कारण नहीं है। वे भगवद्गीता में कहे गये कृष्ण के इन वचनों को नहीं मानते- मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम् -सारा भौतिक जगत् मेरे ही निर्देश के अन्तर्गत गतिशील है। दूसरे शब्दों में, असुरों को संसार की दृष्टि के विषया में पूरा-पूरा ज्ञान नहीं है, प्रत्येक का अपना कोई न कोई सिद्धान्त है। उनके अनुसार शास्त्रों की कोई एक व्याख्या दूसरी व्याख्या के ही समान है, क्योंकि वे शास्त्रीय आदेशों के मानक ज्ञान में विश्वास नहीं करते। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज