श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
पुरुषोत्तम योग
अध्याय 15 : श्लोक-7
ममैवांशः शब्द भी अत्यन्त सार्थक है, जिसका अर्थ है भगवान के अंश। भगवान का अंश ऐसा नहीं होता, जैसे किसी पदार्थ का टूटा खंड (अंश) हम द्वितीय अध्याय में देख चुके हैं कि आत्मा के खंड नहीं किये जा सकते। इस खंड की भौतिक दृष्टि से अनुभूति नहीं हो पाती। यह पदार्थ की भाँति नहीं है, जिसे चाहो तो कितने ही खण्ड कर दो और उन्हें पुनः जोड़ दो। ऐसी विचारधारा यहाँ पर लागू नहीं होती, क्योंकि संस्कृत के सनातन शब्द का प्रयोग हुआ है। विभिन्नांश सनातन है। द्वितीय अध्याय के प्रारम्भ में यह भी कहा गया है। कि प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में भगवान का अंश विद्यमान है।[2] वह अंश जब शारीरिक बन्धन से मुक्त हो जाता है? तो आध्यात्मिक आकाश में वैकुण्ठलोक में अपना आदि आध्यात्मिक शरीर प्राप्त कर लेता है, जिससे वह भगवान की संगति का लाभ उठाता है। किन्तु ऐसा समझा जाता है कि जीव भगवान का अंश होने के कारण गुणात्मक दृष्टि से भगवान के ही समान है, जिस प्रकार स्वर्ण के अंश भी स्वर्ण होते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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