श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
गीता का सार
अध्याय-2 : श्लोक-22
मुण्डक-उपनिषद्[1]तथा श्वेताश्वतर-उपनिषद्[2]समान रूप से इसकी पुष्टि करते हैं – समाने वृक्षे पुरुषो निमग्नोऽनीशया शोचति मुह्यमानः। “यद्यपि दोनों पक्षी एक ही वृक्ष पर बैठे हैं, किन्तु फल खाने वाला पक्षी वृक्ष के फल के भोक्ता रूप में चिंता तथा विषाद में निमग्न है। यदि किसी तरह वह अपने मित्र भगवान् की ओर अन्मुख होता है और उनकी महिमा को जान लेता है, तो वह कष्ट भोगने वाला पक्षी तुरन्त समस्त चिंताओं से मुक्त हो जाता है।” अब अर्जुन ने अपना मुख अपने शाश्वत मित्र कृष्ण की ओर फेरा है और उनसे भगवद्गीता समझ रहा है। इस प्रकार वह कृष्ण से श्रवण करके भगवान् की परम महिमा को समझ कर शोक से मुक्त हो जाता है। यहाँ भगवान् ने अर्जुन को उपदेश दिया है कि वह अपने पितामह तथा गुरु से देहान्तरण पर शोक प्रकट न करे अपितु उसे इस धर्मयुद्ध में उनके शरीरों का वध करने में प्रसन्न होना चाहिए, जिससे वे सब विभिन्न शारीरिक कर्म-फलों से तुरन्त मुक्त हो जायें। बलिवेदी पर या धर्मयुद्ध में प्राणों को अर्पित करने वाला व्यक्ति तुरन्त शारीरिक पापों से मुक्त हो जाता है, और उच्च लोक को प्राप्त होता है। अतः अर्जुन का शोक करना युक्तिसंगत नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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