श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 626

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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प्रकृति के तीन गुण
अध्याय 14 : श्लोक-18


रजोगुण मिश्रित होता है। यह सतो तथा तमोगुणों के मध्य में होता है। मनुष्य सदैव शुद्ध नहीं होता, लेकिन यदि वह पूर्णतया रेजोगुणी हो, तो वह इस पृथ्वी पर केवल राजा या धनी व्यक्ति के रूप में रहता है। लेकिन गुणों का मिश्रण होते रहने से वह नीचे भी जा सकता है। इस पृथ्वी पर रजो या तमोगुणी लोग बलपूर्वक किसी मशीन के द्वारा उच्चतर-लोकों में नहीं पहुँच सकते। रजोगुण में इसकी भी सम्भावना है कि अगले जीवन में कोई प्रमत्त हो जाये।

यहाँ पर निम्नतम गुण, तमोगुण, को अत्यन्त गर्हित (जघन्य) कहा गया है। अज्ञानता (तमोगुण) विकसित करने का परिणाम अत्यन्त भयावह होता है। यह प्रकृति का निम्नतम गुण है। मनुष्य-योनि से नीचे पक्षियों, पक्षियों, सरीसृपों, वृक्षों आदि की अस्सी लाख योनियाँ हैं, और तमोगुण के विकास के अनुसार ही लोगों को ये अधम योनियाँ प्राप्त होती रहती हैं। यहाँ पर तामसाः शब्द अत्यन्त सार्थक है। यह उनका सूचक है, जो उच्चतर गुणों तक ऊपर न उठ कर निरन्तर तमोगुण में ही बने रहते हैं। उनका भविष्य अत्यन्त अंधकारमय होता है।

तमोगुणी तथा रजोगुणी लोगों के लिए सतोगुणी बनने का सुअवसर है और यह कृष्णभावनामृत विधि से मिल सकता है। लेकिन जो इस सुअवसर का लाभ नहीं उठाता, वह निम्नतर गुणों में बना रहेगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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