श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 583

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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प्रकृति, पुरुष तथा चेतना
अध्याय 13 : श्लोक-19


अब हम सारांश रूप में कह सकते हैं कि श्लोक 6 तथा 7 के महाभूतानि से लेकर चेतना धृतिः तक भौतिक तत्त्वों तथा जीवन के लक्षणों की कुछ अभिव्यक्तियों का विश्लेषण हुआ है। ये सब मिलकर शरीर अथवा कार्यक्षेत्र का निर्माण करते हैं, तथा श्लोक 8 से लेकर 12 तक अमानित्वम् से लेकर तत्त्वज्ञानार्थ-दर्शनम् तक कार्यक्षेत्र के दोनों प्रकार के ज्ञाताओं, अर्थात् आत्मा तथा परमात्मा के ज्ञान की विधि का वर्णन हुआ है। श्लोक 13 से 18 में अनादि मत्परम् से लेकर हृदि सर्वस्य विष्ठितम् तक जीवात्मा तथा परमात्मा का वर्णन हुआ है।

इस प्रकार तीन बातों का वर्णन हुआ है- कार्यक्षेत्र (शरीर), जानने की विधि तथा आत्मा एवं परमात्मा। यहाँ इसका विशेष उल्लेख हुआ है कि भगवान् के अनन्य भक्त ही इन तीनों बातों को ठीक से समझ सकते हैं। अतएव ऐसे भक्तों के लिए भगवद्गीता अत्यन्त लाभप्रद है, वे ही परम लक्ष्य, अर्थात् परमेश्वर कृष्ण के स्वभाव को प्राप्त कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में, केवल भक्त ही भगवद्गीता को समझ सकते हैं और वांछित फल प्राप्त कर सकते हैं-अन्य लोग नहीं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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