श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
अध्याय-1 : श्लोक-12
तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः।
तब कुरुवंश के वयोवृद्ध परम प्रतापी एवं वृद्ध पितामह ने सिंह-गर्जना की सी ध्वनि करने वाले अपने शंख को उच्च स्वर से बजाया, जिससे दुर्योधन को हर्ष हुआ।
कुरुवंश के वयोवृद्ध पितामह अपने पौत्र दुर्योधन का मनोभाव जान गये और उनके प्रति अपनी स्वाभाविक दयावश उन्होंने उसे प्रसन्न करने के लिए अत्यन्त उच्च स्वर से अपना शंख बजाया जो उनकी सिंह के समान स्थिति के अनुरूप था। अप्रत्यक्ष रूप में शंख के द्वारा प्रतीकात्मक ढंग से उन्होंने अपने हताश पौत्र दुर्योधन को बता दिया कि उन्हें युद्ध में विजय की आशा नहीं है क्योंकि दूसरे पक्ष में साक्षात भगवान् श्रीकृष्ण हैं। फिर भी युद्ध का मार्गदर्शन करना उनका कर्तव्य था और इस सम्बन्ध में वे कोई कसर नहीं रखेंगे। अध्याय-1 : श्लोक-13
ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः ।
तत्पश्चात् शंख, नगाड़े, बिगुल, तुरही तथा सींग सहसा एकसाथ बज उठे। वह समवेत स्वर अत्यन्त कोलाहलपूर्ण था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ तस्य – उसका; सञ्जयनयन् – बढाते हुए; हर्शम् – हर्ष; कुरु-वृद्धः – कुरुवंश के वयोवृद्ध (भीष्म); पितामहः – पितामह, बाबा; सिंह-नादम् – सिंह की सी गर्जना; विनद्य – गरज कर; उच्चैः - उच्च स्वर से; शङखम् – शंख; दध्मौ – बजाया; प्रताप-वान् – बलशाली
- ↑ ततः – तत्पश्चात्; शङखाः – शंख; भेर्यः – बड़े-बड़े ढोल, नगाड़े; च – तथा; पणव-आनक – ढोल तथा मृदंग; गोमुखाः – शृंग; सहसा – अचानक; एव – निश्चय ही; अभ्यहन्यन्त – एकसाथ बजाये गये; सः – वह; शब्दः – समवेत स्वर; तुमुलः – कोलाहलपूर्ण; अभवत् – हो गया।
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