ते दिन बिसरि गए इहाँ आए।
अति उन्मत्त मोह-मद छाक्यौ, फिरत केस बगराए।
जिन दिवसनि तैं जननि-जठर मैं रहत बहुत दुख पाए।
अति संकट मैं भरत भँटा लौं, मल मैं मूड़ गड़ाए।
बुधि-बिवेक-बल-हीन छीन तन, सबही हाथ पराए।
तब धौं कौन साथ रहि तेरैं, खान-पान पहुँचाए।
तिहिं न करत चित अधम अजहुँ लौं जीवत जाके ज्याए।
सूर सो मृग ज्यौं बान सहत नित विषय व्याध के गाए।।320।।