को को न तरयौ हरि नाम लिएँ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

Prev.png
नाम-महिमा
राग बिलावल



 
को को न तरयौ हरि-नाम लिएँ।
सुवा पढ़ावत गनिका तारी, व्‍याध तरयौ सर-घात किऐं।
अंतर दाह जु मिटयौ व्‍यास कौ इक चित ह्वै भागवत किऐं।
प्रभु तैं जन, जन तैं प्रभु बरतत, जाकी जैसी प्रीति हिऐं।
जौ पै राम-भक्ति नहिं जानी, कह सुमेरु सम दान दिऐं।
सूरजदास विमुख जो हरि तै, कहा भयौ जुग कोटि जिऐं।।89।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः