जा दिन संत पाहुने आवत -सूरदास

सूरसागर

द्वितीय स्कन्ध

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राग केदारौ
सत्‍संग-मनिमा



जा दिन संत पाहुने आवत।
तीरथ कोटि सनान करैं फल जैसौ दरसन पावत।
नयौ नेह दिन-दिन प्रति उनकै चरन-कमल चित लावत।
मन-बच-कर्म और नहिं जानत, सुमिरत औ सुमिरावत।
मिथ्‍याबाद-उपाधि-रहित ह्वै, बिमल-बमल जस गावत।
बंधन कर्म कठिन जे पहिले, सोऊ काटि बहावत।
संगति रहैं साधु की अनुदिन, भव-दुख दूरि नसावत।
सूरदास संगति करि तिनकी, जे हरि-सु‍रति करावत।।17।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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