जन कौ हौ आधीन सदाई।
दुरवासा बैकुंठ गये जब तब यह कथा सुनाई।।
बिदित विरद ब्रह्मन्य देव तुम करुनामय सुखदाई।
जारत है मोहिं चक्र सुदर्शन हा प्रभु लेहु बचाई।।
जिन तन धन मोहिं प्रान समरपे सील सुभाव बड़ाई।
ताकौं विषम विषाद कहौ मुनि मोपै सह्यौ न जाई।।
उलटि जाहु नृप चरन सरन मुनि वहै राखिहै आई।
‘सूरजदास’ दास की महिमा श्रीपति श्रीमुख गाई।। 1।।