प्रभु जू बिपदा भली बिचारी -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

Prev.png
राग कान्‍हरौ
कुंती-विनय





प्रभु जू बिपदा भली बिचारी।
धिक यह राज बिमुख चरननि तैं, कहति पांडु की नारी।
लाखा-मंदिर कौरव रचियौ, तहँ राखे बनवारी।
अंबर हरत सभा मैं कृष्‍ना सोक –सिंधु तै तारी।
अतिथि रिषोस्‍वर सापन आए, सोच भयौ जिय भारी।
स्‍वल्‍प साग तैं तृप्‍त किए सब, कठिन आपदा टारी।
जन अर्जुन की रच्‍छा कारन, सारथि भए मुरारी।
सोई सूर सहाइ हमारे, संतनि के हितकारी।।282।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः