हरि सौ ठाकुर और न जन कौ।
तिहूँ लोक भृगु जाइ आइ कहि, या विधि सब लोगनि सौ।।
ब्रह्मा राजस गुन अधिकारी, सिव तामस अधिकारी।
बिस्नु सत्य केवल अधिकारी, विप्र लात उर धारी।।
मुख प्रसन्न सीतल स्वभाव नित, देखत नैन मिलाइ।
यह जिय जानि भजौ सब कोऊ, ‘सूरज’ प्रभु जदुराइ।। 4308।।