सूत ब्‍यास सौं हरि-गुन सुने -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग बिलावल
सूत-शौनक-संवाद


सूत ब्‍यास सौं हरि-गुन सुने। बहुरौ तिन निज मन मैं गुने।
सो पुनि नोमषार मैं आयौ। तहाँ रिषिनि को दरसन पायौ।
रिषिनि कह्यौ हरि-कथा सुनावो। भली-भाँति हरि के गुन गावौ।
प्रथमहिं कह्यौं ब्‍यास-अवतार। सुनौ सूर सो अब चित्त धार।।228।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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