असुर द्वै हुते बलवंत भारी -सूरदास

सूरसागर

अष्टम स्कन्ध

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राग मारू
सुंद-उपसुंद-बध



असुर द्वै हुते बलवंत भारी। सुंद-उपसुंद स्वच्छा बिहारी।
भगवती तिन्हैं दीन्ही दिखाई। देखि सुंदरि रहे दोउ लुभाई।
भगवती कह्यौ तिनकौं सुनाई। जुद्ध जीतै सो मोहि बरै आई।
तब दुहुँनि जुद्ध कीन्हौ बनाई। लरि मुए तुरत ही दोउ भाई।
देखिकै नारि मोहित जो होवैं। आपनौ मूल या विधि सो खोवै।
सुक नृपति पाहिं जिहि बिधि सुनाई। सूर जनहूँ जिही भाँति गाई।।11।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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