‘कहौ पितु मोसौं सोइ सतिभाव।
जातैं दुरजोधन-दल जीतौं, किहि विधि करौं उपाव।‘
’जब लगि जिय घट-अंतर मेरै, को सरबरि करि पावै ?
चिरंजीव तौलौं दुरजोधन, जियत न पकरयौ आवै।
कौरव छाँड़ि भूमि पर कैसै दूजौ भूप कहावै ?
तौ हम कछु न बसाइ पार्थ, जौ श्रीपति तोहि जितावै’।।
‘अब मैं सरन तुम्हैं तकि आयौ हमैं मंत्र कछु दीजै।
नाटरु कुटुँब सैन संहरि सब, कौन काज कौं जीजैं’।
’द्रुपद-कुपार होइ रथ आगे, धनुष गहौ तुम बान।
ध्वजा बैठि हनुमत लग गाजै, प्रभु हाँकै रथ-यान।
केतिक जीव कृपिन सम बपुरौ, तजै कालहू प्रान।
सूर एकहीं बान बिदारै, श्री गोपाल की आन’।।275।।