मेरौ माई निधनी कौ धन माधौ।
बारंबार निरखि सुख मानति, तजति नही पल आधौ।।
छिनु छिनु परसति अंकम लावति, प्रेम प्रकृत ह्वै बाँधौ।
निसिदिन, चंद चकोरी अँखियनि, मिटै न दरसन साधौ।।
करिहै कहा अकूर हमारौ, दैहै प्रान अबाधौ।
'सूर' स्याम घन हौं नहिं पठवौ, अबहिं कस किन बाँधौ।।2971।।