सखा कहन लागे हरि सौं तब -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग भैरव
धेनुक-वध



सखा कहन लागे हरि सौं तब। चलौ ताल-बन कौं जैऐ अव।
ता बन मैं फल बहुत सुहाए। वैसे हम कबहूँ नहिं खाए।
धेनुक असुर तहां रखवारी। चलौ कहौ हँसि बल बनवारी।
बिहँसत हरि संग चल गुवाला। नाचत गावत गुन-गोपाला।
सौयो हुतौ असुर तरु-छाया। सुनत सब्‍द तुरतहिं उठि धाया।
हलधर कौं देख्‍यौ तिन आए। हाथ दोउु बल करि जु चलाए।
पकरि पाइ बलधद्र फिरायौ। मारि ताहि तरु माहिं गिरायौ।
और बहुत ताकौ परिवारा। हरि-हलधर मिलि सबकौं मारा।
ग्‍वा‍लनि वन-फल रुचि सौं खाए। बहुरौ बृंदाबनहिं सिधाए।
हरि-हलधर-छबि बरनि न जाई। सूरदास यह लोला गाई।।499।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः