सुने है स्याम मधुपुरी जात।
सकुचनि कहि न सकति काहू सौ, गुप्त हृदय की बात।।
संकित बचन अनागत कोऊ, कहि जु गयौ अधरात।
नींद न परै घटै नहि रजनी, कब उठि देखौ प्रात।।
नंद नंदन तौ ऐसे लागै, ज्यौ जल पुरइन पात।
'सूर' स्याम सँग तैं बिछुरत हैं, कब ऐहै कुसलात।।2981।।