सूर कहै भागवत विचारि -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग बिलाबल
पांडव-राज्‍याभिषेक




हरि हरि, हरि हरि, सुमिरन करौ। हरि चरनारबिंद उर धरौ।
हरि पांडव कौं ज्‍यौं दियौ राज। पुनि सो गये राज ज्‍यौं त्‍याज।
बहुरौ भयौ परिक्षित राजा। ताकौ साप बिप्र-सुत साजा।
सुनि हरि कथा मुक्‍त सो भयौ। सूत सौनकनि सौं सो कह्यौ।
कौं हसु कथा सुनौ चित धारि। सूर कहै भागवत विचारि।।260।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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