हरि हरि, हरि हरि, सुमिरन करौ। हरि चरनारबिंद उर धरौ।
हरि पांडव कौं ज्यौं दियौ राज। पुनि सो गये राज ज्यौं त्याज।
बहुरौ भयौ परिक्षित राजा। ताकौ साप बिप्र-सुत साजा।
सुनि हरि कथा मुक्त सो भयौ। सूत सौनकनि सौं सो कह्यौ।
कौं हसु कथा सुनौ चित धारि। सूर कहै भागवत विचारि।।260।।