दीन द्विज द्वारै आइ भयौ ठाढ़ौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग केदारौ
संक्षिप्त सुदामाचरित्र


दीन द्विज द्वारै आइ भयौ ठाढ़ौ।
नाम सुदामा कहत नाथ जू, दुखी आहि अति गाढ़ौ।।
सुनतहि बचन कमलदल लोचन, कमलापति उठि धाए।
त्रिभुवननाथ जानि अपनौ प्रिय, हित सौ कठ लगाए।।
आदरि करि मंदिर मैं ल्याए, कनक पलँग बैठाए।
कथा अनेक पुरातन कहि कहि, गुरु के धाम बताए।।
खैबे कौ कछु भाभी दीन्हौ, श्रीपति श्रीमुख बोले।
फेंट उपर तै अजुल तंदुल, बल करि हरि जू खोले।।
द्वै मूठी तंदुल मुख मेले, बहुरौ हाथ पसारयौ।
त्रिभुवन दै करि कह्यौ रुकमिनी, अपनौ हाथ निवारयौ।।
बिदा कियौ पहुँच्यौ निज नगरी, हेरत भवन न पायौ।
मंदिर रही नारि पहिचानी, प्रीति समेत बुलायौ।।
दीनदयाल देवकीनदन, वेद पुकारत चारयौ।
‘सूर’ सुदामा कौ जु भेटि हरि, दारिद दुख निवारयौ।। 4245।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः