स्याम गए उठि भोरहीं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


स्याम गए उठि भोरहीं, बृंदा कै धाम।
कामा कै गृह निसि बसे, पुरयौ मनकाम।।
साँझ गए कहि आइहै, बहुनायक काम।
सेज सँवारति आस लै, ऐसैहि गई जाम।।
अरुन उदै द्वारै खरे, देखत भई ताम।
रिसनि रही झहराइ के, मनही मन बाम।।
चिह्न और अँग नारि के, बिनु उर दाम।
'सूरदास' प्रभु गुनभरे, आलस तनु झाम।।2675।।

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