विनती सुनौ दीन की चित दै -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग केदारौ
माया-वर्णन



            
विनती सुनौ दीन की चित दै, कैसे तुव गुन गावै?
माया नटी लकुटि कर लीन्‍हे कोटिक नाच नचावै।
दर-दर लोभ लागि लिए डोलति, नाना स्‍वाँग वनावै।
तुम सौं कपट करावति प्रभु जू, मेरी बुधि भरमावै।
मन अभिलाष-तरंगनि करि करि, मिथ्‍या निसा जगावै।
सोवत सपने मैं ज्‍यौं संपति, त्‍यौं दिखाइ बौरावै।
महा मोहिनी मोहि आतमा, अपमारगहिं लगावै।
ज्‍यौं दूती पर-बधू भोरि कै, लै पर-पुरुष दिखावै।
मेरे तो तुम पति, तुमहीं गति, तुम समान को पावै।
सूरदास प्रभु तुम्‍हरी कृपा बिनु, को मो दुख बिसरावै।।42।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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