अब नँद गाइ लेहु सँभारि।
जो तुम्हारै आनि बिलमे, दिन चराई चारि।।
दूध दही खवाइ कीन्हे, बड़े अति प्रतिपारि।
ये तुम्हारे गुन हृदय तै, डारिहै न बिसारि।।
मातु जसुदा द्वार ठाढ़ी, चलै आँसू ढारि।
कह्यौ रहियौ सुचित सौ, यह ज्ञान गुर उर धारि।।
कौन सुत, को पिता माता, देखि हृदै बिचारि।
'सूर' के प्रभु गवन कीन्हौ, कपट कागद फारि।।2991।।