हरि हरि हरि हरि सुमिरन करौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल
सुदामाचरित



हरि हरि हरि हरि सुमिरन करौ। हरि चरनारविंद उर धरौ।।
बिप्र सुदामा सुमिरे हरी। ताकी सकल आपदा टरी।।
कहौ सु कथा सुनो चित धारि। कहै सुने सु लहै मुख सार।।
बिप्र सुदामा परम कुलीन। विष्नु भक्ति सौ अति लवलीन।।
भिच्छा वृत्ति उदर नित भरे। अह निरि हरि हरि सुमिरन करे।।
नाम सुशीला ताकौ नारि। पतिव्रता पति आज्ञाकारि।।
पति जो कहै सो करै चित लाइ। ‘सूर’ कह्यौ इक दिन या भाइ।। 4224।।

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