ब्रह्मा ब्रह्मरूप उर धारि -सूरदास

सूरसागर

तृतीय स्कन्ध

Prev.png
राग बिलावल
सनकादिक-अवतार



ब्रह्मा ब्रह्मरूप उर धारि। मन सौं प्रगट किए सुत चारि।
सनक, सनंदन, सनतकुमार। बहुरि सनातन नाम ये चार।
ये चारौं जब ब्रह्मा किए। हरि कौं ध्यान धरयौ तिन हिये।
ब्रह्मा कह्यौ, सृष्टि विस्तारौ। उन यह बचन हृदय नहिं धारौ।
कह्यौ, यहै हम तुमसौं चहैं। पाँच बरष के नितहीं रहैं।
ब्रह्मा सौं तिन यह बर पाइ। हरि, चरननि चित राख्यौ लाइ।
सुकदेव कह्यौ जाहि परकार। सूर कह्यौ ताही अनुसार।।6।।


Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः