बार सत्तरह जरासंध, मथुरा चढि आयौ ।
गयौ सो सब दिन हारि, जात घर बहुत लजायौ ।।
तब खिस्याइ कै कालजवन, अपनै सँग ल्यायौ ।
हरि जू कियौ बिचार, सिंधु तट नगर बसायौ ।।
उग्रसेन सब लै कुटुब, ता ठौर सिधायौ ।
अमरपुरी तै अधिक, तहाँ सुख लोगनि पायौ ।।
कालजवन मुचुकुंदहिं सौ, हरि भसम करायौ ।
बहुरि आइ भरमाइ अचल रिपु ताहि जरायौ ।।
जरासिंधुह ह्याँ तै पुनि, निज देस सिधायौ ।
गए द्वारिका स्याम राम, जस ‘सूरज’ गायौ ।। 4163 ।।