सखी री स्याम सबै इक सार -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार
स्याम रँग पर तर्क


सखी री स्याम सबै इक सार।
मीठे वचन सुहाए बोलत, अंतर जारनहार।।
भँवर कुरग काक अरु कोकिल, कपटिन की चटसार।
कमलनैन मधुपुरी सिधारे, मिटि गयौ मंगलचार।।
सुनहु सखी री दोष न काहू, जो विधि लिख्यौ लिलार।
यह करतूति उनहिं की नाही, पूरब विविध विचार।।
कारी घटा देखि बादर की, सोभा देति अपार।
'सूरदास' सरिता सर पोषत, चातक करत पुकार।।3749।।

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