सखी री स्याम सबै इक सार।
मीठे वचन सुहाए बोलत, अंतर जारनहार।।
भँवर कुरग काक अरु कोकिल, कपटिन की चटसार।
कमलनैन मधुपुरी सिधारे, मिटि गयौ मंगलचार।।
सुनहु सखी री दोष न काहू, जो विधि लिख्यौ लिलार।
यह करतूति उनहिं की नाही, पूरब विविध विचार।।
कारी घटा देखि बादर की, सोभा देति अपार।
'सूरदास' सरिता सर पोषत, चातक करत पुकार।।3749।।