भक्तनि कै सुखदायक स्‍याम -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग बिलावल
दान-लीला


भक्तनि कै सुखदायक स्‍याम। नारी पुरुष नहीं कछु काम।।
संकट में जिनि जहाँ पुकारयौ। तहाँ प्रगटि तिनकौं उद्धारयौ।।
सुख भीतर जिनि सुमिरन कीन्‍हौ। तिनकौं दरस तहाँ हरि दीन्‍हौ।।
दुख सुख मैं जो हरि कौं ध्‍यावैं। तिनकौं नैंकु न हरि बिसरावै।।
चित दै भजै कौनहूँ भाउ। ताकौं तैसौ त्रिभुवन-राउ।।
कामातुर गोपी हरि ध्‍यायौ। मन-बच-क्रम हरि सौं चित लायौ।।
षट ऋतु तप कीन्‍हौ तनु गारी। होहिं हमारे पति गिरिधारी।।
अंतरजामी जानी सबकी। प्रीति पुरातन पाली तबकी।।
बसन हरे गोपिनि सुख दीन्‍हौ। सुख दै सबकौ मन हरि लीन्‍हौ।।
जुवतिनि कैं यह ध्‍यान सदाई। नैंकु न अंतर होहिं कन्‍हाई।।
घाट बाट जमुना-तट रोकैं। मारग चलत जहाँ तहँ टोकैं।।
काहू की गागरि धरि फोरैं। काहू सौं हँसि बदन सकोरैं।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः