सुकदेव हरि चरननि सिर नाइ -सूरदास

सूरसागर

द्वादश स्कन्ध

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राग बिलावल




हरि हरि हरि हरि सुमिरन करौ। हरि चरनारबिंद उर धरौ।।
सुकदेव हरि चरननि सिर नाइ। राजा सौ बोल्यौ या भाइ।।
कहौ हरि कथा सुनौ चित लाइ। ‘सूर’ तरौ हरि के गुन गाइ।। 1।।

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