गोविंद कोपि चक्र कर लीन्‍हौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सारंग
भगवान का चक्र-धारण




गोविंद कोपि चक्र कर लीन्‍हौं।
छाँड़ि अापनो प्रन जादवपति, जन कौ भायो कीन्‍हौ।
रथ तैं उतरि अवनि आतुर ह्वै, चले च अति धाए।
मनु संचित भू-भार उतारन, चपल भए अकुलाए !
कछुक अंग तै उड़त पीतपट, उन्‍नत बाहु बिसाल।
स्त्रवत स्त्रोनकन, तन-सोभा, छवि-घन बरसात मनु लाल।
सूर सु भुजा समेत सुदरसन देखि बिरंचि भ्रम्‍यौ।
मानौ आन सृष्टि करियै कौं, अंबुज नाभि जम्‍यौ।।।273।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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