हौ इहाँ गोकुल ही तै आई ।
देवकि माइ पाइँ लागति हौ, जसुमति मोहि पठाई ।।
तुमसौ महर जुहार कह्यौ है, पालागन नँदनारी ।
मेंरै हूतौ राम कृष्न कौ, भेट्यौ भरि अँकवारी ।।
औरौ एक सँदेस कह्यौ है, कहौ तो तुम्है सुनाऊँ ।
बारक बहुरि तुम्हारे सुत कौ कैसैहु दरसन पाऊँ ।।
तुम जननी जगविदित ‘सूर’ प्रभु हम हरि की है धाइ ।
कृपा करहु पठवहु इहि नातै, जीवै दरसन पाइ ।। 3178 ।।