प्रद्युम्नजन्म सुभ घरी लीन्हौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल
प्रद्दुम्न-जन्म



प्रद्युम्नजन्म सुभ घरी लीन्हौ ।
काम अवतार लियौ बदत यह बात जग, ताहि सम तुल्य नहिं रूप चीन्हौ ।।
पृथी पर असुर सबर भयौ अति प्रबल, तिन उदधि माहिं तिहि डारि दीन्हौ ।
मच्छ लियौ भच्छि सो मच्छ मछवी गह्यौ, असुरपति कौ सु लै भेंट कीन्हौ ।।
मच्छ के उदर तै बाल परगट भयौ, असुर मायावती हाथ दीन्हौ ।
कह्यौ यह काम परिनाम तेरो पुरुष वचन नारद सुमिरि रति सु लीन्हौ ।।
भयौ जब तरुन तब नारि तासो कह्यौ, रुकमिनी मात हरि तात तेरौ ।
नाम मम रति बिदित बात जानत जगत, काम तुव नाम पुनि पुरुष मेरौ ।।
असुर कौ मारि परिवार कौ देहि सुख, देउँ विद्या तुम्है मै बताई ।
बिना विद्या ताहिं जीति सकिहै नही, भेद की बात सब कहि सुनाई ।।
प्रद्यम्न सकल विद्या समुझि नारि सौ, असुर सौ जुद्ध माँग्यौ प्रचारी ।
काटि करवार लियौ मारि ताकौ तुरत, सुरनि आकाश जै धुनि उचारी ।।
बहुरि आकास मग जाइ द्वारावती, मातु मन मोद अतिही बढायौ ।
भयौ जदुबंस अति रहस मनु जनम भयौ, ‘सूर’ जन मंगलाचार गायौ ।। 4189 ।।

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