नारायन जब भए अवतार -सूरदास

सूरसागर

एकादश स्कन्ध

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राग बिलावल
नारायण-अवतार-वर्णन



हरि हरि हरि हरि सुमिरन करौ। हरि चरनारबिंद उर धरौ।।
नारायन जब भए अवतार। कहौ सो कथा सुनौ चित धार।।
धर्म पिता अरु मूरति माइ। भए नारायन सुत तेहि आइ।।
बदरीकास्रम रहे पुनि जाइ। जोगऽभ्यास समाधि लगाइ।।
उनके और कामना नाहिं। सुख पावै त्रिभुवन मन माहि।।
सुरपति देखत गयौ डराइ। काम सैन सँग दियौ पठाइ।।
रितु बसंत फूली फुलवाइ। मंद, सुगंध बयार बहाइ।।
करत गान गंर्धव सुहाइ। मंद, सुगंध बयार बहाइ।।
काम बान पाँचौं संधाने। नारायन ते मनहिं न आने।।
तब तिन सबनि तहाँ भय पायौ। कह्यौ इंद्र हमैं कहाँ पठायौ।
तब नारायन आँखि उघारी। उन सबकी कीन्ही मनुहारी।।
तुव कछु मन मैं भय मति करौ। अभय हमारैं आस्रम करौ।।
दोष तुम्हारौ है कछु नाहि। तुम्है पठायौ है सुरनाह।।
इंद्रहु कौ कछु दूषन नाहि। राज हेत डरपत मन माहि।।
उन कर जोरि बिनै उच्चारी। नारायन हरि हरि बनवारी।।
उधरत लोग तुम्हारे नाम। क्यौ हरि मोह सकै तुम्है काम।।
जे नर सेवा न तुम्हरी करै। अरु संसार मनोरथ धरै।।

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