नारद ब्रह्मा कौं सिर नाइ। कह्यौ, सुनौ त्रिभुवन-पति-राइ।
सकल सृष्टि यह तुमतै होइ। तुम सम द्वितिया और न कोइ।
तुमहूँ धरत कौन कौ ध्यान। यह तुम मौसौं करौ बखान।
कह्यौं करता-हरता भगवान। सदा करत मैं तिनकौ ध्यान।
नारद सौं कह्यौ विधि जिहिं भाइ। सूर कह्यौ त्यौं ही सुक गाइ।।35।।