तब बसुदेव हरषित गात।
स्याम रामहि कठ लाए, हरषि देवै मात।।
अमर दिवि दुदुभी दीन्ही, भयौ जैजैकार।
दुष्ट दलि सुख दियौ संतनि, ये वसुदेव कुमार।।
दुख गयौ बहि हर्ष पूरन, नगर के नरनारि।
भयौ पूरब फल सँपूरन, लह्यौ सुत दैत्यारि।।
तुरत बिप्रनि बोलि पठये, धेनु कोटि मँगाइ।
'सूर' के प्रभु ब्रह्मपूरन, पाइ हरषे राइ।।3091।।