ठा‍ढ़ी अजिर, जसोदा अपनैं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ
चंद्र-प्रस्ताव



ठा‍ढ़ी अजिर, जसोदा अपनैं, हरिहिं लिए चंदा दिखरावत।
रोवत कत बलि जाउँ तुम्हारी, देखौं धौं भरि नैन जुड़ावत।
चितै रहै तब आपुन ससि तन, अपने कर लै-लै जु बतावत।
मीठौ लगत किधौं यह खाटौ, देखत अति सुंदर मन भावत।
मनहीं मन हरि बुद्धि करत हैं माता सौं कहि ताहि मँगावत।
लागी भूख, चंद मैं खैहौं, दहि देहि रिस करि बिरुझावत।
जसुमति कहति कहा मैं कीनौ, रोवत मोहन अति दुख पावत।
सूर स्याम कौं जसुमति बोधति, गगन चिरैयां उड़त दिखावत।।188।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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