काग-रूप इक दनुज धरयौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग
कागासुर-बध



काग-रूप इक दनुज धरयौ।
नृप आयसु लै धरि माथे पर, हरषवंत उर गरब भर्‌यौ।
कितिक बात प्रभु तुम आयुस तैं वह जानौ मो जात मरयौ।
इतनी कहि गोकुल उड़ि आयौ, आइ नंद-घर-छाज रह्यौ।
पलना पर पौढ़े हरि देखे, तुरत आइ नैननिहिं अरयौ।
कंठ चांपि बहु बार फिरायौ, गहि फटक्यौ, नृप पास परयौ।
तुरत कंस पूछन तिहिं लाग्यौ, क्यौं आयौ नहि काज करयौ?
बीतैं जाम बोलि तब आयौ, सुनहु कंस, तब आइ सरयौ।
धरि अवतार महाबल कोऊ, एकहिं कर मेरौ गर्ब हरयौ।
सूरदास प्रभु कंस-निकंदन, भक्त-हेत अवतार धरयौ।।59।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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