स्याम बलराम गए धनुषसाला।
लियौ रथ तै उतरि रजक मारयौ जहाँ, कंदरा तै निकसि सिंघ बाला।।
नंद उपनंद सँग सखा इक थल राखि, कोउ बने आवै वीर जोटा।
असुर सैना खरे देखिकै वै डरे, धनुष चहुँ पास रिपु घटा घोटा।।
घेरि लीन्हे स्याम बलराम कौ तहाँ, बोलि सब उठे हरि धनुष तोरौ।
'सूर' तुमकौ सुने भुजनि बल चड अति, हँसत हरि कह्यौ यह बैर जोरौ।।3048।।