सुरगन सहित इंद्र ब्रज आवत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राम कान्हरौ
इंद्र-शरणागमन


सुरगन सहित इंद्र ब्रज आवत।
घवल बरन ऐरावत देख्यौ उतरि गगन तैं घरनि घँसावत।।
अमरा-सिव रबि-ससि-चतुरानन, हय-गय बसह-हंस-मृग-जावत।।
धर्मराज, बनराज, अनल, दिव, सारद, नारद, सिव-सुत भावत।।
मेढ़ा, महिष, मगर, गुदरारौ, मोर आखुमन, वाहन, गावत।
ब्रज के लोग देखि डरपे मन, हरि आगैं कहि कहि जु सुनावत।।
सात दिवस जल वरषि सिरान्यौ, आवत चल्यौ ब्रजहि अतुरावत।
घेरौ करत जहाँ तहँ ठाढ़े, ब्रजबासिनि कौं नाहिं बचावत।।
दूरहिं तैं बाहन सौ उतरयौ, देवान सहित चल्यौ सिर नावत।
आइ परयौ चरननि तर आतुर, सूरदास-प्रभु सीस उठावत।।976।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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