रविबंसी भयौ रैवत राजा। ता सम जग दुतिया न बिराजा।
ता गृह जन्म रेवती लयौ। ताकौ लै सो ब्रह्मपुर गयौ।
बिधि तिहिं आदर दै बैठायौ। तब नृप मन मैं अति सुख पायौ।
तहाँ देखि अप्सरा-अखारा। नृपति कछू नहिं वचन उचारा।
जब अप्सरा नृत्य करि रही। तब राजा ब्रह्मा सौं कही।
मम पुत्री बच-प्रापत आहि। आज्ञा होइ, देउँ तिहि व्याहि।
ब्रह्मा कह्मौ, सुनौ नर-नाह। तुमसौ नृप मैं अब नाह।
हलधर कौ तुम देहु बिहाहि। व्याह जोग अब सोई आहि।
रैवत व्याह कियौ भुवि आह। आप कियौ तप बन मैं जाइ।
हलधर-ब्याह भयो या भाइ। सूरदास जन दियौ सुनाइ ।।4।।